जमाने से जमाने को, कोई शिकवा नहीं है,
मगर बिखरे जमाने में, कोई तनहा नहीं है,
है दुनिया में बहुत इन्सां, परस्तिश करने वाले,
जहाँ अफसोस है इनमें, कोई खुदा नहीं है,
हर इन्सान की आदत, नहीं होती सताने की,
कोई आशा नहीं रखता, किसी से चोट खाने की,
अगर मुमकिन नहीं है, ज़ख़्म को जाहिर यहाँ करना,
भला फिर क्या जरूरत है, यहाँ आँसू बहाने की,
मेरी चौखट पे आने से, उसे अब शर्म आती है,
मेरी आहट को पाकर वो, भला क्यूँ मुस्कुराती है,
किसी दिन आज़मा लेना, मेरी गलियों में आकर तुम,
मेरी तनहाइयाँ भी, आज तक तुझको बुलातीं हैं,
कभी हमने तुम्हें पूजा कभी तुमने हमें पूजा,
मगर अफसोस है दुनिया में तेरा है कोई दूजा,
कहाँ से आ रही है ये तेरी गलियों से शहनाई,
बता अब कौन है तेरा, मेरा तो हर कोई दूजा,
तेरी किस्मत को चमका दे ये मुझमें हैं अभी ताकत,
सबिस्तों को तेरे अब भी बना सकता मेरा हिम्मत,
तू डरता है मेरे अक्सों से मतलब है नहीं तुझको,
या थोड़ा है तेरे दिल में मेरे खातिर कोई चाहत,
तू खुद से दूर है अबतक वजह है क्या तेरा आखिर,
इशारों से मुझे बतला तेरी मंजिल कहाँ है फिर,
ये सबको है यहाँ मालूम, तू वहाँ पर रुक नहीं सकता,
तू ठहरा है वहाँ अब तक, वजह है क्या तेरा आखिर,
अब में थक चुका हूँ क्या, तुझे एहसास है इसका,
बिना तेरे मेरी दुनिया को अब फिर आस है किसका,
लो अब मैं बन्द करता हूँ कलम से बन्दिशें लिखना,
मेरे मंजिल के रस्तें में भला अब साथ है किसका,
कहूँ अब क्या तेरी दुनिया से मतलब है नहीं मुझको,
मैं जिन्दा हूँ ज़माने में, ये ख़बर है नहीं तुझको,
फिज़ाओं में जहाँ तुमने, छटा अपनी बिखेरी थी,
उसे मैं भूल जाउँ या, वो असर है नहीं मुझको,
जिसे तुम चाहते हो वो, तुम्हे बस आजमाएंगे,
कभी रूठेंगे तुमसे तो, कभी तुमको मनाएंगे,
जरा तब सोच लेना तुम, कोई तुमको हँसाता था,
मगर किस्मत तेरी फूटी, तुझे बस वो रूलाएंगें,
अगर ऐसा नहीं है तो, कोई अब रो नहीं सकता,
किसी को पा लिया है जो, उसे अब खो नहीं सकता,
"गगन" ये कह रहा जिनसे, वो अगर सुन रहे होंगे,
तो वादा है मेरा दुनिया, बेवफ़ा हो नहीं सकता,
05/10/2010 राकेश 'गगन'