Wednesday, March 21, 2012

आत्मा क्या है ? एक विचार एक वैज्ञानिक सिद्धान्त !

बहुत दिनों से मेरे मन में तमाम तरह के विचारों का संघात चल रहा था कि आखिर आत्मा है क्या ?? क्या वास्तव में आत्मा होती है ?? यदि नहीं होती तो इसके नाम का अस्तित्व ही क्यों विद्यमान है ? ये सब तरह के विचार और प्रश्न मेरे मन में पूरी तरह से घर कर चुके थे । इसके लिए मैंने सैकड़ों आध्यात्मिक पुस्तकों तक का अध्ययन कर डाला लेकिन अध्ययनोपरान्त मेरा चेतन मन मुझे ही इस बात के लिए कोस रहा था कि तुम एक वैज्ञानिक प्रधान समाज से जुड़े हो, तुम्हारी पृष्ठभूमि भी विज्ञान की छत्र छाया में ही गुजरी है, तो फिर इतनी सरलता से आध्यात्मिक विचारों के आगे क्यों नतमस्तक हो गये ? वास्तविकता भी यही है, एक विज्ञान का छात्र पूरा जीवन केवल संघर्ष ही तो करता है, लेकिन उसकी जिज्ञासा शान्त न होकर और बढ़ती एंव और बढ़ती ही रहती है। इसी बीच वह अपने निष्कर्षों तक पहुँचकर अपनें विचारों की धारा बदलता है जिसे हम विज्ञान की नयी खोज मान बैठतें है, लेकिन उसके लिए वहीं से एक नई मंजिल का नया मार्ग मिलता है । मैंने कई पुस्तकों का गहन अध्ययन किया लेकिन आत्मा की एक ठोस परिभाषा को न प्राप्त कर सका । जितनी तरह की पुस्तकें उतने ही तरह के विचारों ने मुझे पुन: उसी मार्ग पर ला खड़ा कर दिया जहाँ से मैं अपनी मंजिल तलाशने निकला था । मैंने इसी बीच कुछ फारेन राइटर्स की पुस्तकों का भी अध्ययन करना प्रारम्भ कर दिया। जितनों के बारे में मैं सुना उतनी ही किताबों को खोजकर अपनी जिज्ञासा को शान्त करने का प्रयास करता रहा । कुछ वैज्ञानिक लेखक जिन्होंने लाइफ साइन्स से जुड़े तथ्यों पर प्रकाश डाला था उन्होनें ही मुझे कुछ राहत प्रदान किया जिनमें ओवरी-डी-ब्रायन की आलोचनात्मक पुस्तक " लाइफ बियान्ड लाइफ-4" सबसे प्रभावशाली रहा लेकिन जान कैनेडी की पुस्तक " नथिंग इज एव्रीथिंग" भी कम प्रभावशाली न रहा । लेकिन कुछ आध्यात्मिक पुस्तकें जैसे "जीवनादर्श व आत्मानुभूति " स्वामि अड़गड़ानन्द तथा गरूणपुराण कम रोचक न थे मैंने किसी को नहीं छोड़ा सबका विच्छेदन कर डाला यहाँ तक कि गीता पर लिखी तीन पुस्तकों का भी अध्ययन करने का मौका मिला और बहुत कुछ हासिल किया । अन्तत: मेरे निष्कर्ष का समय आ ही गया और मैनें खुद को सन्तुष्ट करने का एक सबसे उपयुक्त मार्ग की खोज की जो शायद आपको भी इस संशय से मुक्ति दिला सकती है, अगर आप थोड़ बहुत भी वैज्ञानिक तथ्यों को स्विकारतें हैं तो ...!! " आत्मा एक उर्जा है " । हाँ ये सौ फिसदी सत्य है कि आत्मा एक उर्जा है । जिस प्रकार हम उर्जा को न तो देख सकतें हैं और न ही सुन सकतें हैं केवल इसके एक विशेष अवस्था को महसूस कर सकतें है ठीक उसी प्रकार हम आत्मा को केवल महसूस कर सकतें हैं न तो उसे हम देख और न ही हम सुन सकतें हैं और जिस अवस्था की हम उपर बात किये है वह अवस्था है हमारा चेतन मन । एक दूसरा तथ्य "आत्मा एक उर्जा " के सम्बन्ध में बहुत ही ठोस है ...। E=MC2 ( E-Energy, M-mass, C- velocity of light*2) के अनुसार- "उर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही न नष्ट किया जा सकता है बस इसे एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है ।" जैसे हम घरों में प्राय: विद्युत बल्ब से प्रकाश का अनुभव करतें हैं जो एक विद्युत उर्जा का रूप है । जिसमें विद्युत की उर्जा एक प्रकाश की उर्जा में परिवर्तित हो रहा है, अन्य जैसे गाड़ी चलातें है तो जो गाड़ी के लिए जो गतिज उर्जा मिल रही है उसका दूसरा रूप पेट्रोल द्वारा तैयार यान्त्रिक उर्जा है । ठीक इसी प्रकार हमारे शरीर में मौजूद आत्मा की उर्जा एक द्वितीयक उर्जा है जिससे हमें केवल दैनिक दिनचर्यां के लिए उर्जा मिलती है अन्यथा जीवन संभव नहीं है और इसका प्राथमिक स्रोत को ही शायद परमात्मा की संज्ञा दी गयी है । अब प्रश्न ये उठता है कि जब हमारा शरीर एक उर्जा आधारित माध्यम मात्र है तो लगातार उर्जा प्रवाहित होने के बावजूद भी हमारा जीवन सीमित क्यूँ है ? इसके लिए मैं यहाँ अवगत करा दूँ कि कोई भी यान्त्रिक मशीन को किसी प्राथमिक उर्जा की सहायता से भी एक सीमा तक ही चलायमान रखा जा सकता है । यह यान्त्रिक उर्जा के सन्दर्भ में एक वैज्ञानिक पहल है जैसे एक बाइक को केवल पेट्रोल व मोबिल की सहायता से उम्र भर नहीं चलाया जा सकता है उसकी भी एक सीमा होती है जिसे हम सर्विसिंग कहतें हैं । लेकिन शरीर की सर्विसिंग के ज्ञान का स्तर एक इन्सान के स्तर से कहीं ऊपर है ।

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