Friday, March 30, 2012

ख़लिश(ग़जल)

कुछ आहटें नहीं तुम थोड़ा सा ख़्वाब दे दो,
मुझे चाहते हो कितना इसका हिसाब दे दो,
तुम्हें उम्र भर मैं देखूँ ये है ख़्वाहिशें हमारी,
शामो-सहर हो रौशन मुझे आफ़ताब दे दो,


तेरी आरजू के ख़ातिर मेरी जान अब फ़िदा है,
औक़ात क्या हमारी ये सब तुम्हें पता है,
कहते हैं नाफ़हम अब मुझको नशा नहीं है,
तुझको नशे में देखूँ ऐसी शराब दे दो,


तुझे नाज़ है ख़ुदी पे की तू अभी जवाँ है,
मेरा नज़्म है तुझी पे और हर कलम फ़ना है,
करके लहू को स्याही लिखता रहूँगा तुझको,
या पढ़ सकूँ मैं तुझको ऐसी क़िताब दे दो,


मैं हो न जाउँ पागल मेरी तिश्नग़ी मिटा दो,
तुम किस चमन में हो अब मुझको पता बता दो,
सूखे हुए ग़ुलों से कुछ याद आ रहा है,
बीते हुए पलों का मुझको ग़ुलाब दे दो,


तुम नक्श हो किसी का मुझको ख़बर नहीं है,
तुम खोदते हो जिसको मेरी क़बर नहीं है,
तेरे लब्ज़ की है बन्दिश या बोलते नहीं हो,
फिर क्या ख़लिश है तेरा इसका जवाब दे दो ।

                                                                                               26/12/2011  राकेश 'गगन'

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