हर आँसू कुछ कह जाता,
या फिर पलकों पे रहता है,
नीर नहीं अल्फ़ाज है दिल का,
या अपने दिल की कहता है,
हर आँसू कुछ कह जाता,
या फिर पलकों पे रहता है,
ग़म का मातम ग़र छाया हो,
या खुशियों से भर आया हो,
अश्क अत्फ है दोनों पल का,
यह अब्र सरीखे सहता है,
हर आँसू कुछ कह जाता,
या फिर पलकों पे रहता है,
क्यूँ अहज़ान छुपाया तुमनें,
ग़म में खुद को बहकाया तुमने
अब अश्क तेरा कहता मुझसे
जो तनहाई मे बहता है,
हर आँसू कुछ कह जाता,
या फिर पलकों पे रहता है,
क्या कष्ट नहीं होता है मुझको,
या खुशी नहीं मिलता है तुझको
मेरे ग़म से अन्जान है क्यूँ
या अपने ही ग़म को सहता है,
हर आँसू कुछ कह जाता,
या फिर पलकों पे रहता है,
02/08/2010 राकेश 'गगन'
No comments:
Post a Comment