Sunday, March 25, 2012

** शायद मेरे पास एक तनहा दोस्त मोबाइल है **

हर वक्त तनहा गुजरता है अब मेरा,
फिर अकेले में भी क्यूँ चेहरे पर स्माइल है,
मुस्कुराहट मेरा अकेलेपन में ही सही,
शायद मेरे पास एक तनहा दोस्त मोबाइल है,

सर्द सिहरन में रजाई की पनाहें हो,
या गर्म लू के मैदानों में कुछ ढूँढती निगाहें हों,
एहसास तो यही होता,जैसे अजीजों से भरी फाइल है,
शायद मेरे पास एक तनहा दोस्त मोबाइल है,

मुझसे तो छोटा है ये पर दर्द पे रोता नहीं,
पास इसके सबकुछ है पर शायद कुछ भी खोता नहीं,
यही इसकी खूबियाँ है और यही इसका स्टाइल है,
शायद मेरे पास एक तनहा दोस्त मोबाइल है,

हमसफर का कुछ सुकून भरा सन्देशा हो,
या बस एक मिस-काल आने का अन्देशा हो,
गूँजती महफिल में एक शान्त प्रोफाइल है,
शायद मेरे पास एक तनहा दोस्त मोबाइल है,
शायद मेरे पास एक तनहा दोस्त मोबाइल है,

                                                                                                      01/11/2011  राकेश 'गगन'

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