मुझे महरूम करके पूछते हो ख़्वाहिशें क्या है,
मग़र तुम जानते हो कि मेरी अब लज्ज़तें क्या हैं,
मेरे अहज़ान पर रोने की आदत है नहीं तुझको,
मग़र अब तू बता सकता है तेरी इश्रतें क्या हैं,
ज़िग़र में है तेरे ज़ुम्बिश मुझे तुम क्यों डराते हो,
ज़फ़ा करने में तेरा शौक़ है तो नालिशें क्या हैं,
नज़ाक़त है तेरा या चाहते हो तुम लहू बहना,
मुझे डर है तेरे बाज़ू में रखीं ख़न्जरें क्या है ।
24/04/2012- राकेश "गगन"
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