Sunday, April 8, 2012

प्यारा बचपन

गये दिन हमारे वो बचपन के प्यारे,
कहाँ ग़ुम हैं अपनों के बीते नज़ारे,

बड़ी ही सुरीली थी कोयल की बोली,
वो दादी की हाथों के चन्दा-सितारे,

थी अपनी जमीं आसमाँ भी था अपना,
कहाँ खो चुका है अतीतों का सपना,

बड़ा ही कठिन है उसे भूल पाना,
मगर आज जिन्दा हैं उसके सहारे,

खुले आसमां में पतंगों की लहरें,
लगे बौर अमियाँ के सुन्दर सुनहरे,

घने मेघ से जल का रिमझिम बरसना,
वो दादुर का टर-टर तलाबों किनारे,

मेरे मित्र-मण्डल का सबको खिझाना,
खड़ी धूप में दूर बगिया में जाना,

वो दिन भर की मस्ती को भूलें तो कैसे,
कहाँ है वो मस्ती वो खुशियाँ कहाँ रे,

गये दिन हमारे वो बचपन के प्यारे,
कहाँ गुम हैं अपनों के बीते नजारे

                                                                                                                 02/02/2012   राकेश 'गगन'

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