मुक्क़मल ज़िन्दगी के फ़साने ना दिखे
वक़्त पर तेरे अपने निशाने ना दिखे,
देख ले आज तू ज़िन्दगी की ख़ुमारियाँ
शायद कल तुझे महफ़ूज़ ज़माने ना दिखे,
रिहा कर दे तू क़ैद ज़ुगनुओं को ज़ालिम
फ़ानूस रौशनी में ख़ामोश शबाने ना दिखे,
ऐतराज़ ना कर मायूस लम्हों से ज़िन्दगी के
कल तलक तुझको जीने के बहाने ना दिखे,
ढूँढ लो साहिले मुक़ाम को बेवक़्त ऐ गगन
क़श्तियाँ हों साहिलें होँ और ठिकाने ना दिखे,
©- राकेश 'गगन'
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