Monday, January 20, 2014

बस वक़्त बेरहम होता है (कविता)

क़ातिल हैं ख़न्जर तो क्या है
बस वक़्त बेरहम होता है,
जो वक़्त हँसाता हैं सबको
उस वक़्त में इन्सां रोता है,,!!

क़ातिल हैं ख़न्जर तो क्या है
बस वक़्त बेरहम होता है...!!

तुमने बस चक्की में आटे को
अब तक पिसते देखा है,
मैंने दो वक़्त के पहियों में
लोगों को घिसते देखा है,
देखा तो जनाज़ा क्या देखा
कुछ वक़्त जनाज़ा होता है,

क़ातिल हैं ख़न्जर तो क्या है
बस वक़्त बेरहम होता है...!!

ग़र भूल गये हो खेल वक़्त का
नज़र अतीतों पे डालो
तू हार गया है आज वक़्त से
कल की जीतों पे डालो,
ऐ ! इन्सां हार के वक़्त से क्यूँ
हर वक़्त नींद तू खोता है,

क़ातिल हैं ख़न्जर तो क्या है
बस वक़्त बेरहम होता है...!!

सूखी दरिया उजाड़ मौसम
बस वक़्त का अपना किस्सा है,
तू लिख इबारतें ख़ुद से ही
ये वक़्त तेरा अब हिस्सा है,
अब वक़्त के साये में आसूँ
दिन-रात तू क्यों पिरोता है,

क़ातिल हैं ख़न्जर तो क्या है
बस वक़्त बेरहम होता है...!!


बस वक़्त बेरहम होता है,,,!!



                                                          ०६/०३/२०१३_____©-राकेश 'गगन'

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