कुछ चलचित्र में दृष्टिपटल पर,
मध्यरात्री रात्री को तुम आते हो,
घोर निशा नित सारंगी संघ
साज़ सुरीले तुम गाते हो,
साया हो या हो चेतन तुम
कल्पित बिम्ब तेरा दिखता है,
सकल उजेरा हो रैना पर
संशय अज़ब बना रहता है,
मेरी अभिलाषा है तुमसे
शाश्वतता अपनी दिखलाओ,
आभासी या बन प्रतिमूर्ति
नयन समक्ष पुनः आ जाओ
आहत दिल में किस आशय से
तुम पहचान छुपा जाते हो ?
कुछ चलचित्र में दृष्टिपटल पर,
मध्यरात्री रात्री को तुम आते हो,
१८/०३/२०१३_____©-राकेश 'गगन'
No comments:
Post a Comment