Tuesday, April 24, 2012

☀☀ एक ज़िन्दग़ी भी नसीब नहीं होती ज़िन्दग़ी को ☀☀

एक ज़िन्दग़ी भी नसीब नहीं होती ज़िन्दग़ी को,
खुशीयाँ भी आँसू दे जाती हैं आदमी को,

कुछ खास ही होतें हैं रोनें वाले इस जहाँ में,
जो महफ़िल में सुला देतें हैं अपनी हँसी को,

यूँ तो हर वक्त ज़िन्दग़ी से लड़ रहा हूँ मैं,
बस दिल ही तरसता है एक छोटी सी खुशी को,

मेरी तनहाईयाँ ही सिर्फ वहम है मेरा,
मैं अक्सर अकेले ही गले लगाता हूँ बेबसी को,

उठती लहरों से साहिले-दिल में भी आस सी जगती है,
ऐ ख़ुदा तू क्यूँ देता है आस मेरी तिश्नग़ी को,

हम तो ख़ुशनसीब हैं कि हमनें आज़ सुबह देख ली,
वरना एक रौशनी भी नसीब नहीं होती है किसी किसी को,




                                                                                                                 15/05/2012   - राकेश "गगन"



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♣♣♣ मुझे डर है तेरे बाज़ू में रखीं ख़न्जरें क्या है ♣♣♣

मुझे महरूम करके पूछते हो ख़्वाहिशें क्या है,
मग़र तुम जानते हो कि मेरी अब लज्ज़तें क्या हैं,

मेरे अहज़ान पर रोने की आदत है नहीं तुझको,
मग़र अब तू बता सकता है तेरी इश्रतें क्या हैं,

ज़िग़र में है तेरे ज़ुम्बिश मुझे तुम क्यों डराते हो,
ज़फ़ा करने में तेरा शौक़ है तो नालिशें क्या हैं,



नज़ाक़त है तेरा या चाहते हो तुम लहू बहना,
मुझे डर है तेरे बाज़ू में रखीं ख़न्जरें क्या है ।


                                                                                                                      24/04/2012- राकेश "गगन"

- किसने कल गहरी नींद से जगाया था -

किसने कल गहरी नींद से जगाया था,
आधी रात को मुझे बेवजह बुलाया था,

कौन था मेरे खो जाने की खुशी में,
किसने मेरी मौत का धुँवा उड़ाया था,

हम थे तनहाईयों में अच्छे भले,
किसने मेरी यादों को रात-दिन सताया था,

लो अब रूठने वालों की फेहरिस्त बढ़ गयी,
आज वही रूठा है जिसने मुझे मनाया था,

वो जिन्दगी से हार मानने वालें हैं,
जिसने साथ निभाने का क़सम खाया था,



हम भी कबतलक़ मिट गये होते ऐ दोस्तों,
पर अश्क़ों की बूँदों को पलकों में छुपाया था,,,,

                                                                                                                28/03/2012- राकेश "गगन"

**** कल की ख़लिश ******

ज़िन्दग़ी यूँ ही नही डूबती है अकेले किनारों पे,
अक्सर लोग साँस भी लेतें हैं किसी और के सहारों पे,


मंज़र में यादों का मलबा ही तो मिलता है दुनिया को,
बेवजह कौन नाज़ करता है अपने बीते नज़ारों पे,


सुकून यूँ ही नहीं गँवाया हमने, कुछ अपनी भी ख़ता रही होगी,
शायद हम भी ग़लती किये थे उनके ही इशारों पे,


मुझे रात की ख़लिश का कोई डर न था ऐ दोस्तों,
उसी ने मुझे पाल रखा था अपने चाँद सितारों पे,


रात भी ग़मगीन है और दिन भी रूलाता है,
ऐ ख़ुदा क्या क़हर बरपा दिया मेरे हँसते बहारों पे,,,,,


                                                                                                                       12/03/2012- राकेश "गगन"

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Sunday, April 8, 2012

प्यारा बचपन

गये दिन हमारे वो बचपन के प्यारे,
कहाँ ग़ुम हैं अपनों के बीते नज़ारे,

बड़ी ही सुरीली थी कोयल की बोली,
वो दादी की हाथों के चन्दा-सितारे,

थी अपनी जमीं आसमाँ भी था अपना,
कहाँ खो चुका है अतीतों का सपना,

बड़ा ही कठिन है उसे भूल पाना,
मगर आज जिन्दा हैं उसके सहारे,

खुले आसमां में पतंगों की लहरें,
लगे बौर अमियाँ के सुन्दर सुनहरे,

घने मेघ से जल का रिमझिम बरसना,
वो दादुर का टर-टर तलाबों किनारे,

मेरे मित्र-मण्डल का सबको खिझाना,
खड़ी धूप में दूर बगिया में जाना,

वो दिन भर की मस्ती को भूलें तो कैसे,
कहाँ है वो मस्ती वो खुशियाँ कहाँ रे,

गये दिन हमारे वो बचपन के प्यारे,
कहाँ गुम हैं अपनों के बीते नजारे

                                                                                                                 02/02/2012   राकेश 'गगन'