जो कह रहा है साँसों का मन्जर
वो साज फिर से दिलाओ ना
मेरी याद बनके यूँ ख्वाब बनके
नींद में तुम समाओ ना
वो साज फिर से दिलाओ ना
कुछ बात खाली है रात खाली
बेशोर महफ़िल में साथ खाली
मेरे छत से आकर के बन हवा
साथ बाकी निभाओ ना
वो साज फिर से दिलाओ ना
मैं शख़्स तनहा दरख़्त तनहा
बेसाथ बेख़ुद है वक़्त तनहा
पल जो गुजरे हैं साथ अपने
वो पास आकर गिनाओ ना
वो साज फिर से दिलाओ ना ।
15/06/2018 राकेश गगन
15/06/2018 राकेश गगन