Friday, June 15, 2018

मन्जर


जो कह रहा है साँसों का मन्जर
वो साज फिर से दिलाओ ना
मेरी याद बनके यूँ ख्वाब बनके
नींद में तुम समाओ ना

वो साज फिर से दिलाओ ना

कुछ बात खाली है रात खाली
बेशोर महफ़िल में साथ खाली
मेरे छत से आकर के बन हवा
साथ बाकी निभाओ ना

वो साज फिर से दिलाओ ना

मैं शख़्स तनहा दरख़्त तनहा
बेसाथ बेख़ुद है वक़्त तनहा
पल जो गुजरे हैं साथ अपने
वो पास आकर गिनाओ ना

                              वो साज फिर से दिलाओ ना        
                                                                            15/06/2018 राकेश गगन