हमारे देश की आबादी आज एक अरब से ऊपर हो चुकी है । पूरा विश्व निरन्तर नये युग के सृजन की दिशा में अग्रसर है । मेहनत और ईमानदारी को महत्वपूर्ण स्थान देकर सभी देश अपने पथ को नाप लेने हेतु प्रतिबद्ध है । विडम्बना यह है कि भारत जैसा एक बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र आज न जाने किस ख्वाब की ईबारत खड़ा करने में लीन है कि उसे खुद अपनी ही सुधि नहीं है ।
आर्याव्रत की शुरूवात ही शिक्षा और ज्ञान के भू-गर्भ से होती है । भारतीय पुरातन और संस्कृति का इतिहास इस बात का प्रमाण है कि सम्पूर्ण विश्व में भारतीय शिक्षा सबसे प्राचीन और गूढ़ है । आज यदि भारतीयों में शिक्षा का अपना कोई अस्तित्व नहीं है तो बस मैं यही कहना चाहूँगा कि भारतीयों नें अबतक सिर्फ खोने के अतिरिक्त कुछ प्राप्त नहीं किया चाहे वह पुरातन धरोहरें हो अथवा भारतीय प्राचीनतम संस्कृति ।
क्या आज भारत को एक विकसित राष्ट्र कहा जाना उचित होगा ?
क्या आज का सर्वसम्पन्न भारत अपने भविष्य की मंजिल तलाश रहा है ?
क्या आज का भारत दुनिया के शीर्षस्थ राष्ट्रों की सूची में खुद को लाने की लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है ?
यदि ऐसा नहीं है तो क्यों ?
आज भारतीय सरकारी कामकाजों में दुनिया की सर्वाधिक छुट्टियाँ मनाई जाती हैं । सबसे अधिक अवकाश शिक्षा विभाग में है और विडम्बना ये है कि शिक्षा विभाग में सर्वाधिक अवकाश और शिथिलता प्राथमिक शिक्षा में है । प्राथमिक शिक्षा जिसे हम बेसिक शिक्षा भी कहतें हैं , ये शिक्षा किसी भी राष्ट्र के सम्पूर्ण भविष्योन्नति की नींव मानी जाती है इसी में इतनी भारी खामियाँ मौजूद हैं तो भारत का भविष्य क्या होगा ?
इसका अन्दाजा हम इस बात से लगा सकतें हैं कि दिनभर कुर्सी पर कमर तोड़ने वाले एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक का वेतन वेतन जलती धूप, तूफानी वर्षा व ओलों के मध्य प्राणों का द्यूत खेलने वाले जवानों से कहीं ज्यादा है । एक प्राथमिक शिक्षा का स्तर कितना मजबूत और वास्तविकता कितनी जर्जर है इसका अन्दाजा हम प्राथमिक स्तर पर शिक्षकों की नियुक्तियों से लेकर पाठ्यक्रम और शिक्षा व्सवस्था से ही लगा सकतें हैं कि प्राथमिक स्तर पर जहाँ बी0एड0 और बी0टी0सी जैसे उच्चतम ट्रेंनिग कोर्सों की अनिवार्यता सी हो गयी है वहीं कोई भी प्राथमिक अध्यापक अपने ही बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों में प्रवेश नहीं देना चाहता है । प्राथमिक शिक्षा के ये खेवनहार खुद के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा की छाया से दूर रखने के साथ-साथ मंहगे और कान्वेन्ट स्कूलो को वरीयता देतें है । क्या है इसका अर्थ ?,,,शायद यही कि वह अध्यापक यह बात अच्छी तरह जानता है कि यहाँ हमारे बच्चे का भविष्य सुरक्षित नहीं हैं । ,,,,,तो क्या आपकी नियुक्ति तमाम गरीब और असहाय बच्चों का भविष्य खाक मे मिलाने के लिए किया गया है या सिर्फ आपना पेट भरने के लिए ।
कहाँ है आज हमारे शिक्षा संचालक और कहाँ है देश में नवीनता का हवाई बीज बोने वाले लोग ? कड़े निर्देशन के बावजूद आज यदि सर्वे होता है तो एक प्राथमिक स्तर का तेज विद्यार्थी अपने देश के प्रधानमंत्री के नाम की जगह किसी अच्छे अभिनेता या खिलाड़ी का नाम बताता है,,क्योंकि वह आपको सिखाता है कि एक अभिनेता या खिलाड़ी किसी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति से कहीं बेहतर अपना काम निभाना बखूबी जानता है । हाल तो तब दयनीय हो जाती है जब इसका कारण पूछा जाता है तो अध्यापकों से जवाब मिलता है कि ये चीजें कोर्स में नहीं हैं या बच्चा कम आता है,,,,अब क्या कहेंगे आप ।
भारतीय प्राथमिक विद्यालयों में आज भी अपव्यय और अवरोधन की स्थिति यथावत है परन्तु फाइलों में सारी व्यवस्थाएं दुरूस्त है । हमें सोचना होगा और इन समस्याओं के खिलाफ आवाजें बुलन्द करनी होंगी और हमें अपने देश में ऐसी व्यवस्था का सृजन करना होगा जिससे कम से कम प्राथमिक शिक्षा का यह कलंक धुल सके और हम एक नवीन संकलप्ना को जन्म दे जहाँ से सौ फीसदी साक्षरता का संकल्प पूरा हो सकता है ।
हम अपने युवा बन्धुओं से यही अपेक्षा करते हैं कि रोजगार के लिए जितना संघर्ष हम स्वंय कर रहें है उतना संघर्ष देश के भविष्य हेतु गरीब और असहाय बच्चों को न करना पड़े । हमें अपने कार्यों में लगन,कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी को समाहित करना होगा । हमें ऐसा कुछ नहीं करना है जो हमपे गुजरा हो । हमें आज से ही एक भ्रष्ट-शिक्षा मुक्त भारत के लिए प्रयासरत हो जाना होगा ।
- धन्यवाद